Monday, May 24, 2010

ढल जाएगी अब ये संध्या..

(inspired by a girl i met a few months back..a teenager named sandhya.. who ran away and married her beloved.. she was cheated upon.. within 6 months of marriage she discovered she was HIV+.. she was pregnant that time..her husband threw her out of the house..the child is with her father.. and this girl is not even allowed to meet her daughter..though she could not fight her own fate.. yet she decided not to quit.. she bravely declared her status infront of many people.. and now she is working in association with UTTAR PRADESH STATE AIDS CONTROL SOCIETY..fighting for people like her..)


ढल जाएगी ये संध्या

ज़िन्दगी भी कैसे मोड़ पे लाके खड़ा कर देती है..
राहें आगे बहुत हैं पर मंजिल कहीं अतीत में छूटी दिखाई देती है..

चित्त मे उमढ़ते घुमड़ते हैं प्रश्न कई ,
पीछे मुढ़ जाऊं या बढूँ आगे जहाँ हो एक ज़िन्दगी नयी..
हर सुबह लाये एक मुस्कुराहट जहाँ ,
जहाँ अपनी पहचान को दूँ मै एक दिशा नई..

उस बीते कल मे रखा ही क्या है??
रंग भी बेरंग नज़र आता है ,
समय का पहिया और पीछे ही ले जाता है.

यह जीवन तो जीने का नाम है न..
ज़िन्दगी व्यतीत तो जानवर भी करता है!

कब तक उन यादों में मै रहूंगी बंधी..
खेलती दुनिया की नज़र से लुक्का छुप्पी..

क्यूँ न मै भी बहार आऊँ ??
क्यूँ न वो सुख मै भी पाऊँ??
बूंदों का धरती पर एक साज़ नया सुनूँ ..
नदी की अटखेलियों जैसे मै भी चहक जाऊं..
इन्द्रधनुष के रंग सी फिर से खिल जाऊं..
ग़म को भुला के हवाओं संग थोडा मै भी गुनगुनाऊँ...

बस , कर लिया है अब एक निष्चय
जगाऊँगी उम्मीदें नई..

ढल जाएगी ये 'संध्या'
बनूंगी अब एक 'किरण' नई~~

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